Monday, 30 December 2019

Class 10 NCERT Hindi Book स्पर्श भाग 2, chapter - 13 solution

NCERT Class 10 Hindi solved questions

विषय - हिंदी
पुष्तक का नाम - स्पर्श भाग 2
अध्याय - 13 : तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र
बोर्ड - CBSE
कक्षा - 10
Class 10 NCERT Hindi Book स्पर्श भाग 2, chapter - 13 solution

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए

1. ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को कौन-कौन से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है?

उत्तर:
  1. राष्ट्रपति स्वर्णपदक से सम्मानित।
  2. बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म को पुरस्कार।
  3. मास्को फ़िल्म फेस्टिवल में भी यह पुरस्कृत हुई।
2. शैलेंद्र ने कितनी फ़िल्में बनाई?

उत्तर:

शैलेंद्र ने अपने जीवन में केवल एक ही फ़िल्म का निर्माण किया। ‘तीसरी कसम’ ही उनकी पहली व अंतिम फ़िल्म थी।

3. राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ फ़िल्मों के नाम बताइए।

उत्तर:
  1. ‘मेरा नाम जोकर’
  2. ‘अजन्ता’
  3. ‘मैं और मेरा दोस्त’
  4. ‘सत्यम् शिवम् सुंदरम्’
  5. ‘संगम’
  6. ‘प्रेमरोग’
4. ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म के नायक व नायिकाओं के नाम बताइए और फ़िल्म में इन्होंने किन पात्रों का अभिनय किया है?

उत्तर:

‘तीसरी कसम’ फ़िल्म के नायक राजकपूर और नायिका वहीदा रहमान थी। राजकपूर ने हीरामन गाड़ीवान का अभिनय किया है और वहीदा रहमान ने नौटंकी कलाकार ‘हीराबाई’ का अभिनय किया है।

5. फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ का निर्माण किसने किया था?

उत्तर:

शिल्पकार शैलेंद्र ने।

6. राजकपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ के निर्माण के समय किस बात की कल्पना भी नहीं की थी?
उत्तर:

राजकपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ के निर्माण के समय कल्पना भी नहीं की थी कि फ़िल्म के पहले भाग के निर्माण में ही छह साल का समय लग जाएगा।

7. राजकपूर की किस बात पर शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया?

उत्तर:

‘तीसरी कसम’ फ़िल्म की कहानी सुनकर राजकपूर ने पारिश्रमिक एडवांस देने की बात कही। इस बात पर शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया।

8. फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को किस तरह का कलाकार मानते थे?
उत्तर:

फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को कला-मर्मज्ञ एवं आँखों से बात करनेवाला कुशल अभिनेता मानते थे।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-

1. ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को ‘सैल्यूलाइड पर लिखी कविता’ क्यों कहा गया है?
उत्तर:

‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को सैल्यूलाइड पर लिखी कविता अर्थात् कैमरे की रील में उतार कर चित्र पर प्रस्तुत करना इसलिए कहा गया है, क्योंकि यह वह फ़िल्म है, जिसने हिंदी साहित्य की एक अत्यंत मार्मिक कृति को सैल्यूलाइड पर सार्थकता से उतारा; इसलिए यह फ़िल्म नहीं, बल्कि सैल्यूलाइड पर लिखी कविता थी।

2. ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को खरीददार क्यों नहीं मिल रहे थे?
उत्तर:

इस फिल्म में किसी भी प्रकार के अनावश्यक मसाले जो फिल्म के पैसे वसूल करने के लिए आवश्यक होते हैं, नहीं डाले गए थे। फ़िल्म वितरक उसके साहित्यिक महत्त्व और गौरव को नहीं समझ सकते थे इसलिए उन्होंने उसे खरीदने से इनकार कर दिया।

3. शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य क्या है?
 

उत्तर:

शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य है कि वह उपभोक्ताओं की रुचियों को परिष्कार करने का प्रयत्न करे। उसे दर्शकों की रुचियों की आड़ में सस्तापन/उथलापन नहीं थोपना चाहिए। उसके अभिनय में शांत नदी का प्रवाह तथा समुद्र की गहराई की छाप छोड़ने की क्षमता होनी चाहिए।

4. फ़िल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरिफाई क्यों कर दिया जाता है?
उत्तर:

फ़िल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरिफाई इसलिए किया जाता है जिससे फ़िल्म निर्माता दर्शकों का भावनात्मक शोषण कर सकें। निर्माता-निर्देशक हर दृश्य को दर्शकों की रुचि का बहाना बनाकर महिमामंडित कर देते हैं जिससे उनके द्वारा खर्च किया गया एक-एक पैसा वसूल हो सके और उन्हें सफलता मिल सके।

5. ‘शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं’- इस कथन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

‘शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं -का आशय है कि राजकपूर के पास अपनी भावनाओं को व्यक्त कर पाने के लिए शब्दों का अभाव था, जिसकी पूर्ति बड़ी कुशलता तथा सौंदर्यमयी ढंग से कवि हृदय शैलेंद्र जी ने की है। राजकपूर जो कहना चाहते थे, उसे शैलेंद्र ने शब्दों के माध्यम से प्रकट किया। राजकपूर अपनी भावनाओं को आँखों के द्वारा व्यक्त करने में कुशल थे। उन भावों को गीतों में ढालने का काम .शैलेंद्र ने किया।

6. लेखक ने राजकपूर को एशिया का सबसे बड़ा शोमैन कहा है। शोमैन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:

शोमैन का अर्थ है-प्रसिद्ध प्रतिनिधि-आकर्षक व्यक्तित्व। ऐसा व्यक्ति जो अपने कला-गुण, व्यक्तित्व तथा आकर्षण के कारण सब जगह प्रसिद्ध हो। राजकपूर अपने समय के एक महान फ़िल्मकार थे। एशिया में उनके निर्देशन में अनेक फ़िल्में प्रदर्शित हुई थीं। उन्हें एशिया का सबसे बड़ा शोमैन इसलिए कहा गया है क्योंकि उनकी फ़िल्में शोमैन से संबंधित सभी मानदंडों पर खरी उतरती थीं। वे एक सर्वाधिक लोकप्रिय अभिनेता थे और उनका अभिनय जीवंत था तथा दर्शकों के हृदय पर छा जाता था। दर्शक उनके अभिनय कौशल से प्रभावित होकर उनकी फ़िल्म को देखना और सराहना पसंद करते थे। राजकपूर की धूम भारत के बाहर देशों में भी थी। रूस में तो नेहरू के बाद लोग राजकपूर को ही सर्वाधिक जानते थे।

7. फ़िल्म ‘श्री 420′ के गीत ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति क्यों की?

उत्तर:

संगीतकार जयकिशन ने गीत ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर आपत्ति इसलिए की, क्योंकि उनका ख्याल था कि दर्शक चार दिशाएँ तो समझते हैं और समझ सकते हैं, लेकिन दस दिशाओं का गहन ज्ञान दर्शकों को नहीं होगा।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

1. राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह करने पर भी शैलेंद्र ने यह फ़िल्म क्यों बनाई?
 

उत्तर:

राजकपूर एक परिपक्व फ़िल्म-निर्माता थे तथा शैलेंद्र के मित्र थे। अतः उन्होंने एक सच्चा मित्र होने के नाते शैलेंद्र को फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह भी किया था, लेकिन शैलेंद्र ने फिर भी ‘तीसरी कसम’ फिल्म बनाई, क्योंकि उनके मन में इस फिल्म को बनाने की तीव्र इच्छा थी। वे तो एक भावुक कवि थे, इसलिए अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति इस फ़िल्म में करना चाहते थे। उन्हें धन लिप्सा की नहीं, बल्कि आत्म-संतुष्टि की लालसा थी इसलिए उन्होंने यह फिल्म बनाई।

2. ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर का महिमामय व्यक्तित्व किस तरह हीरामन की आत्मा में उतर गया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

राजकपूर एक महान कलाकार थे। फ़िल्म के पात्र के अनुरूप अपने-आप को ढाल लेना वे भली-भाँति जानते थे। जब “तीसरी कसम” फ़िल्म बनी थी उस समय राजकपूर एशिया के सबसे बड़े शोमैन के रूप में स्थापित हो चुके थे। तीसरी कसम में राजकपूर का अभिनय चरम सीमा पर था। उन्हें एक सरल हृदय ग्रामीण गाड़ीवान के रूप में प्रस्तुत किया गया। उन्होंने अपने-आपको उस ग्रामीण गाड़ीवान हीरामन के साथ एकाकार कर लिया। इस फ़िल्म में एक शुद्ध देहाती जैसा अभिनय जिस प्रकार से राजकपूर ने किया है, वह अद्वितीय है। एक गाड़ीवान की सरलता, नौटंकी की बाई में अपनापन खोजना, हीराबाई की बाली पर रीझना, उसकी भोली सूरत पर न्योछावर होना और हीराबाई की तनिक-सी उपेक्षा पर अपने अस्तित्व से जूझना जैसी हीरामन की भावनाओं को राजकपूर ने बड़े सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। फ़िल्म में राजकपूर कहीं भी अभिनय करते नहीं दिखते अपितु ऐसा लगता है जैसे वे ही हीरामन हों। ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में राजकपूर का पूरा व्यक्तित्व ही जैसे हीरामन की आत्मा में उतर गया है।

3. लेखक ने ऐसा क्यों लिखा है कि ‘तीसरी कसम’ ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है?
उत्तर:

यह वास्तविकता है कि ‘तीसरी कसम’ ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है। यह फणीश्वरनाथ रेणु की रचना ‘मारे गए गुलफाम’ पर बनी है। इस फिल्म में मूल कहानी के स्वरूप को बदला नहीं गया। कहानी के रेशे-रेशे को बड़ी ही बारीकी से फिल्म में उतारा गया था। साहित्य की मूल आत्मा को पूरी तरह से सुरक्षित रखा गया था।

4. शैलेंद्र के गीतों की क्या विशेषता है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:

शैलेंद्र एक कवि और सफल गीतकार थे। उनके लिखे गीतों में अनेक विशेषताएँ दिखाई देती हैं। उनके गीत सरल, सहज भाषा में होने के बावजूद बहुत बड़े अर्थ को अपने में समाहित रखते थे। वे एक आदर्शवादी भावुक कवि थे और उनका यही स्वभाव उनके गीतों में भी झलकता था। अपने गीतों में उन्होंने झूठे दिखावों को कोई स्थान नहीं दिया। उनके गीतों में भावों की प्रधानता थी और वे आम जनजीवन से जुड़े हुए थे। उनके गीतों में करुणा के साथ-साथ संघर्ष की भावना भी दिखाई देती है। उनके गीत मनुष्य को जीवन में दुखों से घबराकर रुकने के स्थान पर निरंतर आगे बढ़ने का संदेश देते हैं। उनके गीतों में शांत नदी-सा प्रवाह और समुद्र-सी गहराई होती थी। उनके गीत का एक-एक शब्द भावनाओं की अभिव्यक्ति करने में पूर्णतः सक्षम है।

5. फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:

फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र की अनेक विशेषताएँ हैं, लेकिन उनमें से प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
  1. फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र ने जीवन के आदर्शवाद एवं भावनाओं को इतने अच्छे तरीके से फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ के माध्यम से सफलतापूर्वक अभिव्यक्त किया, जिसके कारण इसे सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म घोषित किया गया और बड़े-बड़े पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया गया।
  2. राजकपूर की सर्वोत्कृष्ट भूमिका को शब्द देकर अत्यंत प्रभावशाली ढंग से दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया है।
  3. जीवन की मार्मिकता को अत्यंत सार्थकता से एवं अपने कवि हृदय की पूर्णता को बड़ी ही तन्मयता के साथ पर्दे पर उतारा है।
6. शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है-कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

शैलेंद्र एक आदर्शवादी संवेदनशील और भावुक कवि थे। शैलेंद्र ने अपने जीवन में एक ही फिल्म का निर्माण किया, जिसका नाम ‘तीसरी कसम’ था। यह एक संवेदनात्मक और भावनापूर्ण फिल्म थी। शांत नदी का प्रवाह और समुद्र की गहराई उनके निजी जीवन की विशेषता थी और यही विशेषता उनकी फिल्म में भी दिखाई देती है। ‘तीसरी कसम’ का नायक हीरामन अत्यंत सरल हृदयी और भोला-भाला नवयुवक है, जो केवल दिल की जुबान समझता है, दिमाग की नहीं। उसके लिए मोहब्बत के सिवा किसी चीज़ का कोई अर्थ नहीं। ऐसा ही व्यक्तित्व शैलेंद्र का था, हीरामन को धन की चकाचौंध से दूर रहनेवाले एक देहाती के रूप में प्रस्तुत किया गया है। शैलेंद्र स्वयं भी यश और धनलिप्सा से कोसों दूर थे। इसके साथ-साथ फ़िल्म ‘तीसँरी कसम’ में दुख को भी सहज स्थिति में जीवन सापेक्ष प्रस्तुत किया गया है। शैलेंद्र अपने जीवन में भी दुख को सहज रूप से जी लेते थे। वे दुख से घबराकर उससे दूर नहीं भागते थे। इस प्रकार स्पष्ट है कि शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है।

7. लेखक के इस कथन से कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था, आप कहाँ तक सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।
 

उत्तर:

लेखक के इस कथन से कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई कवि हृदय ही बना सकता था-से हम पूरी तरह से सहमत हैं, क्योंकि कवि कोमल भावनाओं से ओतप्रोत होता है। उसमें करुणा एवं सादगी और उसके विचारों में शांत नदी का प्रवाह तथा समुद्र की गहराई का होना जैसे गुण कूट-कूट कर भरे होते हैं। ऐसे ही विचारों से भरी हुई ‘तीसरी कसम’ एक ऐसी फ़िल्म है, जिसमें न केवल दर्शकों की रुचियों को ध्यान रखा गया है, बल्कि उनकी गलत रुचियों को परिष्कृत (सुधारने) करने की भी कोशिश की गई है।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

1. …. वह तो एक आदर्शवादी भावुक कवि था, जिसे अपार संपत्ति और यश तक की इतनी कामना नहीं थी जितनी आत्मसंतुष्टि के सुख की अभिलाषा थी।

उत्तर:

इसका आशय है कि शैलेंद्र एक आदर्शवादी भावुक हृदय कवि थे। उन्हें अपार संपत्ति तथा लोकप्रियता की कामना इतनी नहीं थी, जितनी आत्मतुष्टि, आत्मसंतोष, मानसिक शांति, मानसिक सांत्वना आदि की थी, क्योंकि ये सद्वृत्तियाँ धन से नहीं खरीदी जा सकतीं, न ही इन्हें कोई भेंट कर सकता है। इन गुणों की अनुभूति तो अंदर से ईश्वर की कृपा से ही होती है। इन्हीं अलौकिक अनुभूतियों से परिपूर्ण थे-शैलेंद्र, तभी तो वे आत्मतुष्टि चाहते थे।

2. उनका यह दृढ़ मंतव्य था कि दर्शकों की रुचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर नहीं थोपना चाहिए। कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह उपभोक्ता की रुचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे।

उत्तर:

एक आदर्शवादी उच्चकोटि के गीतकार व कवि हृदय शैलेंद्र ने रुचियों की आड़ में कभी भी दर्शकों पर घटिया गीत थोपने का प्रयास नहीं किया। फिल्में आज के दौर में मनोरंजन का एक सशक्त माध्यम हैं। समाज में हर वर्ग के लोग फिल्म देखते हैं और उनसे प्रभावित भी होते हैं। आजकल जिस प्रकार की फ़िल्मों का निर्माण होता है। उनमें से अधिकतर इस स्तर की नहीं होती कि पूरा परिवार एक साथ बैठकर देख सके। फ़िल्म निर्माताओं की भाँति वे दर्शकों की पसंद का बहाना बनाकर निम्नस्तरीय कला अथवा साहित्य का निर्माण नहीं करना चाहते थे। उनका मानना था कि कलाकार का दायित्व है कि वह दर्शकों की रुचि का परिष्कार करें। उनका लक्ष्य दर्शकों को नए मूल्य व विचार प्रदान करना था।

3. व्यथा आदमी को पराजित नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का संदेश देती है।

उत्तर:

इसका अर्थ है कि व्यथा, पीड़ा, दुख आदि व्यक्ति को कमज़ोर या हतोत्साहित अवश्य कर देते हैं, लेकिन उसे पराजित नहीं करते बल्कि उसे मजबूत बनाकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। हर व्यथा आदमी को जीवन की एक नई सीख देती है। व्यथा की कोख से ही तो सुख का जन्म होता है इसलिए व्यथा के बाद, दुख के बाद आने वाला सुख अधिक सुखकारी होता है।

4. दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने वाले की समझ से परे है।

उत्तर:

‘तीसरी कसम’ फ़िल्म गहरी संवेदनात्मक तथा भावनात्मक थी। उसे अच्छी रुचियों वाले संस्कारी मन और कलात्मक लोग ही समझ-सराह सकते थे। कवि शैलेंद्र की फ़िल्म निर्माण के पीछे धन और यश प्राप्त करने की अभिलाषा नहीं थी। वे इस फ़िल्म के माध्यम से अपने भीतर के कलाकार को संतुष्ट करना चाहते थे। इस फ़िल्म को बनाने के पीछे शैलेंद्र की जो भावना थी उसे केवल धन अर्जित करने की इच्छा करने वाले व्यक्ति नहीं समझ सकते थे। इस फिल्म की गहरी संवेदना उनकी समझ और सोच से ऊपर की बात है।

5. उनके गीत भाव-प्रवण थे- दुरूह नहीं।

उत्तर:

इसका अर्थ है कि शैलेंद्र के द्वारा लिखे गीत भावनाओं से ओत-प्रोत थे, उनमें गहराई थी, उनके गीत जन सामान्य के लिए लिखे गए गीत थे तथा गीतों की भाषा सहज, सरल थी, क्लिष्ट नहीं थी, तभी तो आज भी इनके द्वारा लिखे गए गीत गुनगुनाए जाते हैं। ऐसा लगता है, मानों हृदय को छूकर उसके अवसाद को दूर करते हैं।

भाषा अध्ययन

1. पाठ में आए ‘से’ के विभिन्न प्रयोगों से वाक्य की संरचना को समझिए।
  1. राजकपूर ने एक अच्छे और सच्चे मित्र की हैसियत से शैलेंद्र को फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह भी किया।
  2. रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ।
  3. फ़िल्म इंडस्ट्री में रहते हुए भी वहाँ के तौर-तरीकों से नावाकिफ़ थे।
  4. दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने के गणित जानने वाले की समझ से परे थी।
  5. शैलेंद्र राजकपूर की इस याराना दोस्ती से परिचित तो थे।
उत्तर:

छात्र स्वयं समझें।

2. इस पाठ में आए निम्नलिखित वाक्यों की संरचना पर ध्यान दीजिए-
  1. ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म नहीं, सैल्यूलाइड पर लिखी कविता थी।
  2. उन्होंने ऐसी फ़िल्म बनाई थी जिसे सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था।
  3. फ़िल्म कब आई, कब चली गई, मालूम ही नहीं पड़ा।
  4. खालिस देहाती भुच्चे गाड़ीवान जो सिर्फ दिल की जुबान समझता है, दिमाग की नहीं।
उत्तर:

छात्र वाक्यों की संरचना पर स्वयं ध्यान दें।

3. पाठ में आए निम्नलिखित मुहावरों से वाक्य बनाइए-
चेहरा मुरझाना, चक्कर खा जाना, दो से चार बनाना, आँखों से बोलना


उत्तर:

मुहावरा – वाक्य प्रयोग
चेहरा मुरझाना – आतंकियों ने जैसे ही अपने एरिया कमांडर की मौत की बात सुनी उनके चेहरे मुरझा गए।
चक्कर खा जाना – क्लर्क के घर एक करोड़ की नकदी पाकर सी०बी०आई० अधिकारी भी चक्कर खा गए।
दो से चार बनाना – आई०पी०एल० दो से चार बनाने का खेल सिद्ध हो रहा है।
आँखों से बोलना – मीना कुमारी का अभिनय देखकर लगता था कि वे आँखों से बोल रही हैं।

4. निम्नलिखित शब्दों के हिंदी पर्याय दीजिए-
  1. शिद्दत – …….
  2. याराना – ……….
  3. बमुश्किल – ………
  4. खालिस – ………..
  5. नावाकिफ़ – ……..
  6. यकीन – …………
  7. हावी – …………
  8. रेशा – ……….
उत्तर:
  1. शिद्दत – श्रद्धा
  2. याराना – मित्रता
  3. बमुश्किल – कठिनाई से
  4. खालिस – शुद्ध
  5. नावाकिफ़ – अनभिज्ञ
  6. यकीन – विश्वास
  7. हावी – आक्रामक
  8. रेशा – पतले-पतले धागे
5. निम्नलिखित संधि विच्छेद कीजिए-
  1. चित्रांकन – ……… + ………
  2. सर्वोत्कृष्ट – ………. + ………..
  3. चर्मोत्कर्ष – ………… + ………….
  4. रूपांतरण – ……….. + ………….
  5. घनानंद – ………… + …………..
उत्तर:
  1. चित्रांकन – चित्र + अंकन
  2. सर्वोत्कृष्ट – सर्व + उत्कर्ष
  3. चर्मोत्कर्ष – चर्म + उत्कर्ष
  4. रूपांतरण – रूप + अंतरण
  5. घनानंद – घन + आनंद
6. निम्नलिखित का समास विग्रह कीजिए और समास का नाम भी लिखिए-
(क) कला-मर्मज्ञ
(ख) लोकप्रिय
(ग) राष्ट्रपति


उत्तर:

विग्रहसमास का नाम
(क) कला-मर्मज्ञकला का मर्मज्ञसंबंध तत्पुरुष समास
(ख) लोकप्रियलोक में प्रियअधिकरण तत्पुरुष समास
(ग) राष्ट्रपतिराष्ट्र का पतिसंबंध तत्पुरुष समास

योग्यता विस्तार

1. फणीश्वरनाथ रेणु की किस कहानी पर ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म आधारित है, जानकारी प्राप्त कीजिए और मूल रचना पढ़िए।

उत्तर:

छात्र स्वयं पढ़ें।

2. समाचार पत्रों में फ़िल्मों की समीक्षा दी जाती है। किन्हीं तीन फ़िल्मों की समीक्षा पढ़िए और तीसरी कसम’ फ़िल्म को देखकर इस फ़िल्म की समीक्षा स्वयं लिखने का प्रयास कीजिए।

उत्तर:

छात्र स्वयं पढ़ें।

परियोजना कार्य

1. फ़िल्मों के संदर्भ में आपने अकसर यह सुना होगा-‘जो बात पहले की फ़िल्मों में थी, वह अब कहाँ’। वतर्ममान दौर की फ़िल्मों और पहले की फ़िल्मों में क्या समानता और अंतर है? कक्षा में चर्चा कीजिए।

उत्तर:

छात्र स्वयं करें।

2. ‘तीसरी कसम’ जैसी और भी फ़िल्में हैं, जो किसी न किसी भाषा की साहित्यिक रचना पर बनी हैं। ऐसी फ़िल्मों की सूची निम्नांकित प्रपत्र के आधार पर तैयार करें।
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 13 तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र 1
उत्तर:
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 13 तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र 1.1

3. लोकगीत हमें अपनी संस्कृति से जोड़ते हैं। तीसरी कसम’ फ़िल्म में लोकगीतों का प्रयोग किया गया है। आप भी अपने क्षेत्र के प्रचलित दो-तीन लोकगीतों को एकत्र कर परियोजना कॉपी पर लिखिए।

उत्तर:

छात्र स्वयं करें।

EXTRA QUESTIONS

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. संगम की सफलता से उत्साहित राजकपूर ने कन-सा कदम उठाया?

उत्तर:

राजकपूर को संगम फ़िल्म से अद्भुत सफलता मिली। इससे उत्साहित होकर उन्होंने एक साथ चार फ़िल्मों के निर्माण की घोषणा की। ये फ़िल्में थीं-अजंता, मेरा नाम जोकर, मैं और मेरा दोस्त, सत्यम् शिवम् सुंदरम्।

2. राजकपूर ने शैलेंद्र के साथ अपनी मित्रता ? निर्वाह कैसे किया?

उत्तर:

राजकपूर ने अपने मित्र शैलेंद्र की फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में पूरी तन्मयता से काम किया। इस काम के बदले उन्होंने किसी प्रकार के पारिश्रमिक की अपेक्षा नहीं की। उन्होंने मात्र एक रुपया एडवांस लेकर काम किया और मित्रता का निर्वाह किया।

3. एक निर्माता के रूप में बड़े व्यावसायिक सा- युवा भी चकर क्यों खा जाते हैं?

उत्तर:

एक निर्माता जब फ़िल्म बनाता है तो उसका लक्ष्य होता है फ़िल्म अधिकाधिक लोगों को पसंद आए और लोग उसे बार बार देखें, तभी उसे अच्छी आय होगी। इसके लिए वे हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं फिर भी फ़िल्म नहीं चलती और वे चक्कर खा जाते हैं।

4. राजकपूर ने शैलेंद्र के साथ किस तरह यारउन्ना मस्ती की ?
उत्तर:

गीतकार शैलेंद्र जब अपने मित्र राजकपूर के पास फ़िल्म में काम करने का अनुरोध करने गए तो राजकपूर ने हाँ कह दिया, परंतु साथ ही यह भी कह दिया कि ‘निकालो मेरा पूरा एडवांस।’ फिर उन्होंने हँसते हुए एक रुपया एडवांस माँगा। एडवांस माँग कर राजकपूर ने शैलेंद्र के साथ याराना मस्ती की।

5. शैलेंद्र ने अच्छी फ़िल्म बनाने के लिए दवा किया?

उत्तर:

शैलेंद्र ने अच्छी फ़िल्म बनाने के लिए राजकपूर और वहीदा रहमान जैसे श्रेष्ठ कलाकारों को लिया। इसके अलावा उन्होंने फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ की मार्मिक कृति ‘तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम’ की कहानी को पटकथा बनाकर सैल्यूलाइड पर पूरी सार्थकता से उतारा।

6. ‘तीसरी कसम’ जैसी फ़िल्म बनाने के पीछे शैलेंद्र की मंशा क्या थी?
उत्तर:

शैलेंद्र कवि हृदय रखने वाले गीतकार थे। तीसरी कसम बनाने के पीछे उनकी मंशा यश या धनलिप्सा न थी। आत्म संतुष्टि के लिए ही उन्होंने फ़िल्म बनाई।

7. शैलेंद्र द्वारा बनाई गई फ़िल्म चल रहीं, इसके कारण क्या थे?

उत्तर:

तीसरी कसम संवेदनापूर्ण भाव-प्रणव फ़िल्म थी। संवेदना और भावों की यह समझ पैसा कमाने वालों की समझ से बाहर होती है। ऐसे लोगों का उद्देश्य अधिकाधिक लाभ कमाना होता है। तीसरी कसम फ़िल्म में रची-बसी करुणा अनुभूति की। चीज़ थी। ऐसी फ़िल्म के खरीददार और वितरक कम मिलने से यह फ़िल्म चले न सकी।

8. ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी नयाँ’ इस पंक्ति के रेखांकित अंश पर किसे आपत्ति थी और क्यों ?
उत्तर:

रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पंक्ति के दसों दिशाओं पर संगीतकार शंकर जयकिशन को आपत्ति थी। उनका मानना था कि जन साधारण तो चार दिशाएँ ही जानता-समझता है, दस दिशाएँ नहीं। इसका असर फ़िल्म और गीत की लोकप्रियता पर पड़ने की आशंका से उन्होंने ऐसा किया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर और वहीदा रहमान का अभिनय लाजवाब था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

जिस समय फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ के लिए राजकपूर ने काम करने के लिए हामी भरी वे अभिनय के लिए प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय हो गए थे। इस फ़िल्म में राजकपूर ने ‘हीरामन’ नामक देहाती गाड़ीवान की भूमिका निभाई थी। फ़िल्म में राजकपूर का अभिनय इतना सशक्त था कि हीरामन में कहीं भी राजकपूर नज़र नहीं आए। इसी प्रकार छींट की सस्ती साड़ी में लिपटी हीराबाई’ का किरदार निभा रही वहीदा रहमान का अभिनय भी लाजवाब था जो हीरामन की बातों का जवाब जुबान से । नहीं आँखों से देकर वह सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान की जिसे शब्द नहीं कह सकते थे। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर और वहीदा रहमान का अभिनय लाजवाब था।

2. हिंदी फ़िल्म जगत में एक सार्थक और उद्देश्यपरक फ़िल्म बनाना कठिन और जोखिम का काम है।’ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

हिंदी फ़िल्म जगत की एक सार्थक और उद्देश्यपरक फ़िल्म है तीसरी कसम, जिसका निर्माण प्रसिद्ध गीतकार शैलेंद्र ने किया। इस फ़िल्म में राजकपूर और वहीदा रहमान जैसे प्रसिद्ध सितारों का सशक्त अभिनय था। अपने जमाने के मशहूर संगीतकार शंकर जयकिशन का संगीत था जिनकी लोकप्रियता उस समय सातवें आसमान पर थी। फ़िल्म के प्रदर्शन के पहले ही इसके सभी गीत लोकप्रिय हो चुके थे। इसके बाद भी इस महान फ़िल्म को कोई न तो खरीदने वाला था और न इसके वितरक मिले। यह फ़िल्म कब आई और कब चली गई मालूम ही न पड़ा, इसलिए ऐसी फ़िल्में बनाना जोखिमपूर्ण काम है।

3. ‘राजकपूर जिन्हें समीक्षक और कलामर्मज्ञ आँखों से बात करने वाला मानते हैं’ के आधार पर राजकपूर के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।

उत्तर:

राजकपूर हिंदी फ़िल्म जगत के सशक्त अभिनेता थे। अभिनय की दुनिया में आने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे उत्तरोत्तर सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते गए और अपने अभिनय से नित नई ऊचाईयाँ छूते रहे। संगम फ़िल्म की अद्भुत सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने एक साथ चार फ़िल्मों के निर्माण की घोषणा की। ये फ़िल्में सफल भी रही। इसी बीच राजकपूर अभिनीत फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ के बाद उन्हें एशिया के शोमैन के रूप में जाना जाने लगा। इनका अपना व्यक्तित्व लोगों के लिए किंवदंती बन चुका था। वे आँखों से बात करने वाले कलाकार जो हर भूमिका में जान फेंक देते थे। वे अपने रोल में इतना खो जाते थे कि उनमें राजकपूर कहीं नज़र नहीं आता था। वे सच्चे इंसान और मित्र भी थे, जिन्होंने अपने मित्र शैलेंद्र की फ़िल्म में मात्र एक रुपया पारिश्रमिक लेकर काम किया और मित्रता का आदर्श प्रस्तुत किया।

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